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प्राइवेट स्कूलों के संचालक और स्टेशनरी दुकानदार, मिलकर डाल रहे अभिभावकों की जेब पर डाँका-BBG NEWS

प्राइवेट स्कूलों के संचालक और स्टेशनरी दुकानदार, मिलकर डाल रहे अभिभावकों की जेब पर डाँका

बबीना-झांसी (उत्तर प्रदेश)। जिस प्रकार इंसान की मूलभूत जरूरतों में रोटी, कपड़ा, और मकान शामिल है। ठीक उसी प्रकार इस बदलते दौर में अब अगर शिक्षा को भी मूलभूत जरूरत में शामिल कर दिया जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि राष्ट्र निर्माण में शिक्षा ही अहम भूमिका अदा करती है। लेकिन अगर अन्य मूलभूत आवश्यकताओं के अलावा शिक्षा भी महंगी हो जाए तो उन गरीब प्रतिभाओं का क्या होगा जो आगे पढ़ना तो चाहती हैं लेकिन महंगाई के कारण उन्हें परिस्थितियों से समझौता करना पड़ता है। हम इसी गंभीर विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं। जो समाज में गरीब मेधावी छात्र-छात्राओं के करियर के निर्माण के लिए सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। जिसे लेकर ना तो शासन प्रशासन गंभीर है और ना ही सरकारें।म यहां बात कर रहे हैं प्राइवेट स्कूलों की। जहां नए शिक्षण सत्र में हर वर्ष प्राइवेट शिक्षण संस्थानो द्वारा अभिभावकों की जेब पर जमकर डाँका डालने का काम किया जाता है। ऐसी परिस्थितियों में प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा प्रणाली महंगी होने के कारण आम आदमी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में असमर्थ और लाचार नजर आ रहा है। जब लोगों से बात की गई तो पता चला कि प्राइवेट स्कूलों में फीस तो अधिक है ही, साथ ही बच्चो की पढ़ाई में इस्तेमाल होने वाली पठन पाठन सामग्री जैसे कॉपी, किताबें, बैग इत्यादि की कीमतें भी आसमान छू रही हैं।पठन-पाठन सामग्री वास्तव में महंगी नहीं है। इसको स्कूल संचालको ने महंगा बना दिया है। इसका सबसे बड़ा कारण जो सामने आया है, वह यह है कि स्कूल संचालकों द्वारा बाजार में किसी एक व्यक्ति या दुकानदार से अनुबंध कर लिया गया है। और अभिभावक को उसी दुकानदार से पठन-पाठन सामग्री खरीदने के लिए विवश किया जा रहा है। क्योंकि जिन दुकानदारों से स्कूल संचालकों का अनुबंध है। वह दुकानदार स्कूल संचालकों को कमीशन के रूप में मोटी रकम प्रदान करते हैं। जिसकी नाजायज भरपाई अभिभावक की जेब से होती है। इतना ही नहीं स्कूल संचालकों द्वारा हर वर्ष पाठ्यक्रम बदल दिया जाता है। ताकि अभिभावक पुराना कोर्स बेचकर अपने बच्चों को नया कोर्स ना दिला सके। इस तरह अभिभावक के अगर दो या तीन बच्चे हैं तो उसे सभी को नया कोर्स ही दिलाना पड़ेगा। जबकि अगर दूसरी तरफ देखा जाए तो एनसीईआरटी की किताबों का मूल्य इनके विपरित बहुत कम होता है।केंद्र की मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा जनहित में कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है। सरकारों को चाहिए कि आम आदमी भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में अच्छी से अच्छी शिक्षा कम दामों पर दिला सके। इसलिए शिक्षा के नाम पर हो रहे, इस बंदरबांट पर रोक लगना चाहिए। पूरे देश में एक प्रकार की शिक्षा नीति लागू होना चाहिए। जिससे गरीब का बच्चा भी अपनी प्रतिभा साबित कर सके। साथ ही ऐसा कानून बनाना चाहिए जिससे गरीब का बच्चा भी प्राइवेट स्कूल में अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके।ऐसा ही मध्य प्रदेश में भी हो रहा था। जब यह खबर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव तक पहुंची, तो उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर ट्वीट करते हुए ऐसे लोगों को सख्त चेतावनी दे डाली।उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा कि मेरे संज्ञान में आया है कि कुछ निजी स्कूलों द्वारा पालकों को कोर्स की किताबें, यूनिफार्म और अन्य शिक्षण सामग्री किसी निर्धारित दुकान से खरीदने के लिए बाध्य किया जा रहा है, जो कि उचित नहीं है।मैंने इस सम्बन्ध में कार्रवाई करने के लिए मुख्य सचिव को निर्देश दिये हैं। स्कूल शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश निजी विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनिमियन) नियम 2020 के तहत प्रथम बार शिकायत प्राप्त होने पर स्कूल संचालक पर ₹2 लाख तक का जुर्माना लगाया जाएगा।पने प्रदेश वासियों के लिए जो कदम मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उठाया है अगर यही कदम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी भी उठा ले तो यहां भी गरीबों के बच्चे अच्छी शिक्षा अर्जित कर सकेंगे।

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Author: BBG News

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