उदयपुर. रंगों के त्योहार होली पर आपने यूं तो अलग अलग अंदाज में होली खेलते हुए और कई परंपराओं को देखा होगा लेकिन राजस्थान के उदयपुर में इससे जुड़ी परंपरा को देखकर आप हैरान हो जाएंगे. यहां के मेनार गांव में बारूद की होली खेली जाती है. इसमें ग्रामीण गांव के चौक में एकत्र होकर रातभर बंदूकों से हवा में गोलियां दागते हैं. बारूद की यह ऐतिहासिक होली पूरी दुनिया में अनूठी है. यह होली मेनारिया के ब्राह्मणों के शौर्य और पराक्रम की निशानी है. बंदूकों के धमाकों के साथ साथ तोप भी चलाई जाती है.
उदयपुर से करीब पचास किलोमीटर दूर स्थित मेनार गांव में होली के दूसरे दिन अनूठे अंदाज में रंगों के इस त्योहार को मनाया जाता है. बीते करीब चार सौ बरसों से चली आ रही परंपरा के अनुसार आज भी इस गांव में बारूद से होली खेली जाती है. गांव के लोग होली के दूसरे दिन जमरा बीज के मौके पर पारंपरिक वेशभूषा में आधी रात को गांव के चौपाल पर एकत्र होते हैं. बाद में वहां जमकर बारूद की होली खेलते हैं.
दर्जनों बंदूकों से किए जाते हैं फायर
परंपरागत बारूद की इस होली को अगर देखें तो लगता है की होली की जगह यहां दिवाली मनाई जा रही है. इस रात सभी बंदूकों से हवाई फायर कर इसे एतिहासिक बनाते हैं. ये हवाई फायर किसी एक ही बंदूक से नहीं बल्कि कई दर्जनों बंदूकों से किए जाते हैं. फायर के इन धमाकों के बीच ग्रामीण पूरे जोश खरोश से नाचते गाते हैं और खुशियां मनाते हैं.

उदयपुर के मेनार गांव में बारूद की होली खेलते ग्रामीण.
विदेशों में रहने वाले मेनारिया ब्राह्मण भी इस मौके पर गांव आते हैं
इस होली की खास बात यह है कि इस जश्न में शामिल होने के लिये देश के विभिन्न प्रांतों से ही नहीं बल्कि विश्व के किसी भी इलाके में रहने वाले मेनार गांव के निवासी यहां आते हैं और जश्न में शामिल होते हैं. इस दौरान एक समय ऐसा भी आता है कि ग्रामीणों के दो गुट आमने सामने खड़ होकर हवाई फायर करते हुए जश्न मनाते नजर आते हैं.
आक्रमणकारियों से की थी मेवाड़ की रक्षा
ग्रामीणों के अनुसार मुगल काल में महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह के समय मेनारिया ब्रह्माणों ने मेवाड़ राज्य पर हो रहे आक्रमण का कुशल रणनीति के साथ सामना कर मेवाड़ राज्य की रक्षा की थी. उसी दिन की याद में इस त्योहार को इस अलग अंदाज में मनाते हुए सभी ग्रामीण पूरी रात बंदूकों से फायर और आतिशबाजी कर जश्न मनाते हैं. बताया जाता है कि मेवाड़ राज्य पर हमला करने की तैयारी कर छिपे हुए आक्रमणकारियों को मेनार गांव में मेनारिया ब्राह्मणों ने रातोंरात वहां मौत के घाट उतारकर मेवाड़ राज्य की रक्षा की थी.
मां अम्बे की कृपा से आज तक नहीं हुआ कोई हादसा
मेनार में इस जश्न के साथ ही पारंपरिक गेर नृत्य भी किया जाता है. उसमें भी अलग ही अंदाज में तलवारों के साथ इस नृत्य को किया जाता है. इस अनोखी होली का गवाह बनने के लिए आस पास के गांवों और दूर दराज से लोग मेनार पहुंचते और पूरी रात जश्न का आनंद लेते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि मां अंबे की कृपा और पांरपरिक संस्कृतिक को जिंदा रखने की ग्रामीणों की ललक के चलते ही आज तक यहां जश्न के दौरान कोई हादसा नहीं हुआ.
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FIRST PUBLISHED : March 27, 2024, 11:00 IST
